३/४ दिवासांपूर्वीचा प्रथमेश, मनीषाची आई, राधा, आणि चंदू
यांच्या भेटीचा तो प्रसंग, इतका ह्रुद्दय झाला, की खरोखरच
मन हेलावल. प्रत्येक पात्राचा अभिनय स्वाभाविक आणि
परिणामकारक
तसाच कालचा राधा, प्रथमेशला आई म्हणायला सांगते तो
प्रसंग --- अप्रतिम अभिनय राधा आणि प्रथमेशचाही
दोन्ही प्रसंग मनाला भिडले आणि काही लिहावस वाटल
मोडक्या तोडक्या शब्दात लिहिलय, केवळ दाद देण्यासाठी
--------------------- आई --------------------
------------------- चंदू : देवकी, कान्हा आणि यशोदा, भेट पाहता मन गहिवरले
------------------------ फिटे पारणे या डोळ्यांचे, अपूर्व दृश्या मी अनुभवले
मनीषाची आई (राधाला) : कळेच ना का तुझे लेकरू
----------------------- “आई” म्हणुनी मला बिलगते
----------------- राधा : ममतेची तव ओढ अनावर
----------------------- गत जन्माही साद घालते
----------------- राधा : नसे हाक ती जरि माझ्यास्तव, त्या हाकेची मीही भुकेली
----------------------- मजही संबोधावे तैसे, इच्छा उर्मी पुन्हा उसळली
----------------------- प्रथमेशाच्या* कृपाप्रसादे या जन्माचे सार्थक व्हावे
----------------------- एक मनीषा* एकदाच तरि मजला त्याने आई म्हणावे
-------------- प्रथमेश : जरी इच्छितो कृती घडेना मूक भावना समजुन घेई
----------------------- लंघुनी मर्यादा शरीराच्या म्हणेन तुजला ही मी आई
----------------------- आ ---- आ ----- ई ----- आई
(* Here प्रथमेश = Ganapatee & मनीषा = desire)
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